boonde jo moti ban gayee
वाह ! गुलाबजी, वाह !
अच्छी चुनी आपने यह काँटों भरी राह !
न तुकों का सरल, सुयोजित ढाँचा,
न छंदों का नपा-तुला साँचा,
कहीं ऊँचे टीले, कहीं गर्त अथाह।
लगता है एक प्रेमिका से
शीघ्र ही आपका जी भर जाता है,
आप किसी नयी चहेती की तलाश में चल पड़ते हैं,
बनी-बनायी गृहस्थी छोड़कर निकल पड़ते हैं,
हरदम कोई नया चेहरा आपकी आँखों में उभर आता है।
जब आपका यौवन ढलने लगा था,
तो फारस की परियों पर आपका मन मचलने लगा था,
और जब उस पार की झंकार सुनने के दिन आये हैं,
तो आपने योरप की ओर कदम बढ़ाये हैं।
नहीं, श्रीमान, नहीं,
यह योरप या अमेरिका नहीं है,
केवल आधुनिकता के नाम पर
यहाँ कोई टिका नहीं है।
अनुभूति कितनी भी अनजानी हो,
अभिव्यक्ति अनजानी नहीं चाहिए,
और स्थानों पर चलती होगी,
साहित्य में मनमानी नहीं चाहिए।
थोड़ा सँभलकर पाँव बढ़ाइएगा,
ठोकर लगे तो हमें मत सुनाइएगा।
अच्छा यह तो बताइए,
आपकी यह नयी प्रेमिका कौन है!
उसकी आँखों का जादू तो आपकी पंक्ति-पंक्ति से झलकता है,
परिचय देते समय आपकी वाणी सदा मौन है।
अच्छा, नयी की न सही,
पुरानी की ही बातें करें,
कौन थी वह जिसने एक दशाब्दी तक
ग़ज़लों में आपको तड़पाया,
प्रेम तो करती रही पर प्रेम को
आपकी तरह मुँह खोलकर नहीं बताया;
बिना किसी संकेत के
हम अपने चित्रों में रंग कैसे भरें !
कहिए, श्रीमान! कुछ तो कहिए,
क्या यह उचित है कि
मोती आपकी मुट्ठी में बंद हो
और हमसे कहा जाय–
“सागर की लहर-लहर छानते रहिए !’