vyakti ban kar aa
मुझसे वह पाप बचपने में हो गया था।
जो किसी घायल पंछी को दौड़ाकर
उसके रक्तसने पंख नोच डाले थे,
जो किसी बुढ़िया को सोयी देखकर
उसकी गठरी के रल, चोरी से निकाले थे,
सब कुछ जैसे सपने में हो गया था।
तू कहे तो अब मैं सौ बार आग में जल मरूँ,
सौ बार नया शरीर धरूँ;
उस पाप से मुक्ति पाने के लिए
क्या करूँ? तू ही बता, क्या करूँ?