vyakti ban kar aa
मैं इन धूलभरी गलियों में
दौड़ते-दौड़ते थक गया हूँ,
मेरे खेल के सामान सभी बेकार हो चुके हैं,
मेरे पाँवों में काँटे-ही-काँटे चुभे हैं,
मेरे वस्त्र तार-तार हो चुके हैं।
मैं किससे कहूँ
कि मुझे मेरे पिता से मिलवा दे!
मुझे अपने कंधों पर उठाकर ले चले,
मेरे लिये नयी पोशाक सिलवा दे!
पता नहीं, लोग क्यों डरते हैं
दर्जी के आने से
पुराने के स्थान पर
नये वस्त्रों में सजाये जाने से !