vyakti ban kar aa
मैंने सुना है, तेरी संभावनाओं का पार नहीं है
फिर क्यों मेरे लिए नित्य नया क्रीड़ागार नहीं है?
तू मुझे बार-बार एक ही मेले में क्यों घुमाता है?
सदा एक-से खिलौने ही क्यों दिखाता है!
वही चाँद, वही सूरज, वही आसमान,
क्या यही है तेरी अनंत विभूतियों का प्रमाण!
हर रात एक नया आकाश रचा तो जानूँ
हर सुबह एक नयी धरती बना तो जानूँ
यह काठ की घोड़ी जिस पर तूने मुझे बिठाया है,
इस पर घूमते-घूमते मुझे चक्कर-सा आया है;
जी करता है, इसकी पीठ पर से कूद जाऊँ,
किसी सजीव वाहन पर अपना आसन जमाऊँ
और इस घेरे के बाहर कुदाकर,
दूर-दूर नीले आकाश में उसे दौड़ाऊँ,
तू यह क्यों नहीं समझता कि मैं अब बड़ा हो गया हूँ!
अपने पाँवों पर खड़ा हो गया हूँ!