nupur bandhe charan
कौन तुम, दूर क्षितिज के पार
प्रति प्रभात आती हो, रूपसि! कर षोड़स श्रृंगार?
नील मधुप स्वागत में उड़ते खोल कमल-दल-द्वार
बढ़ता भानु तुम्हें पहनाने को किरणों का हार
चलती तुम अरुणिम सागर-लहरों पर लघु-पद-भार
छवि की आत्मा-सी, जड़ में चेतन करती साकार
कौन तुम, पूर्व क्षितिज के पार?