नूपुर बँधे चरण_Nupur Bandhe Charan
- अम्बर तक जय-घोष छा रहा
- अश्रु-कण झरते रहे
- आज अणु-अणु सौभाग्य भरा
- इतने मीठे मन में
- इस घाटी का अंत कहाँ है
- इस नीली गिरी-घाटी के उस पार
- एक कुम्हार बाला के प्रति
- किसके साथ विहार करूँ मैं?
- कौन तुम, दूर-क्षितिज के पार
- कौन सी थी दृष्टि वह
- गाता था कोई विरही वन-वन यों
- गीत बनकर ही अधर के पास आना
- गीत में भर दो मेरा जीवन
- चली गयीं वे भेड़ें किस निर्जन में?_गड़ेरिये के गीत
- जब तुम मुझे देख लेती हो
- जादू का देश
- तम से बंधा प्रकाश
- तुम्हारे रूप मधुवन में समीरण मैं बनूँ तो क्या !
- देख रहा मैं सम्मुख स्मृति-से धुंधले नील गगन को
- नवोढ़ा-सी तुम कौन गगन में ?
- नींद में सोयी हुई थी मैं उसाँसों से जगी
- नुपुर बंधे चरण
- पंथ अगम, निशि भारी
- पढ़ मेरी कविता भर आये
- पर्वत-घाटी पार वे गये
- परशुराम का पश्चाताप
- पानी बरस कर खुल गया
- प्रेम की इस मोहक नगरी में
- मृगतृष्णा
- मेरा अंत न होगा
- मेरा लक्ष्य खो गया साथी !
- मैं न रहूँगा यहाँ
- मैं यौवन की पंखुरियाँ खोल रहा हूँ
- यह हिरण्यमय लोक कहाँ था ?
- रोते रोते चुका नयन का पानी
- लहरों के तल में सुहासिनी मेरी
- लौट गए करुणामय आकर द्वार
- शकुंतला के प्रति: अंतर में तू आयी
- शकुंतला के प्रति: अब कैसा व्यवधान
- शकुंतला के प्रति: तुम्हीं पवन में आज प्रवाहित
- शकुंतला के प्रति: मेरा ह्रदय कुलिश-कठोर
- शकुंतला के प्रति: मेरी चन्द्र-विहीना यामिनी
- शकुंतला के प्रति: शकुंतला, चार दिनों की चाँदनी
- शोक-गीत: अभी बज रहे थे
- शोक-गीत: आज जर्जर तरु-शाखा टूटी
- सत्य-अहिंसा शस्त्र न छूटे
- संध्या की पीली किरणों पर चढ़ कर_गड़ेरिये के गीत
- सपने में करता माया सा
- सबल की न धनवान की
- स्मिति से रंजित, अंजित, चपल-नयन
- स्वर-वसंत फूटे
- हवा और पानी सी धरती
- हवा का राजकुमार और रात की रानी