nupur bandhe charan
(4)
मेरा हृदय कुलिश-कठोर
मृत्तिका-घट-सा न फूटा टूटते ही डोर
चह चपलता, स्मित बदन का वह सरल उल्लास
वे सुधामय शब्द, जैसे स्वप्न का आभास
भूमि पर भी पग जिसे रखने न देता, हाय!
वही कोमल गात सिकता में दबाया जाय!
भग्न सर-सा साँस मैं भरता रहूँ दिन-रात
तोड़कर ले जाय कोई प्राण का जलजात!
वही भूमि, गगन, दिशाएँ, वही सब संसार
ज्योति-हंस उड़ा कहाँ जाने क्षितिज के पार?
पहुँच सकता आज मैं भी उड़ उसीकी ओर
मेरा हृदय कुलिश-कठोर
मृत्तिका-घट-सा न फूटा टूटते ही डोर
अपनी 3.5 वर्षों की अल्पवयस पुत्री शकुंतला की मृत्यु पर सन् 1948 में
ये 6 गीत लिखे गये थे।