nupur bandhe charan

गीत बनकर ही अधर के पास आना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे प्राण का उच्छ्वास पाना चाहता हूँ

माधवी वन के रसीले, प्रात, टटके फूल जैसे
प्रीति के अंकुर, कहाँ सोये शिथिल भुजमूल ऐसे!
मैं इन्हींमें मृदु पुलक-मधुमास लाना चाहता हूँ
स्वप्न बनकर ही पलक के पास आता चाहता हूँ

प्राण का आलोक वंदी नमित पलकों की निशा में
दीप की लौ-सा हृदय बहता न जाने किस दिशा में !
मैं उसीकी ज्योति का आभास पाना चाहता हूँ
स्नेह बनकर ही नयन के पास आना चाहता हूँ

चपल अनुकृति से भवों की, मान हिम-सा चूर कर दूँ
प्रेम से सौंदर्य का यह द्वंद्व शाश्वत दूर कर दूँ
मैं सलज मुख पर तुम्हारे हास लाना चाहता हूँ
चित्र बनकर ही चिबुक के पास आना चाहता हूँ

खींचकर नि:श्वास-सा मुझको हृदय से तुम लगा लो
सजल अलकों में सजा लो, सलज पलकों में छिपा लो
मैं भवों पर बन विजय-उल्लास छाना चाहता हूँ
हार बनकर ही गले के पास आना चाहता हूँ

रहे हँसता ही नयन का अश्रुमय भी एक कोना
चाहता हूँ मैं विरह में भी न तुम से दूर होना
मैं तुम्हारा बन सजल निःश्वास जाना चाहता हूँ
अश्रु बनकर ही चरण के पास आना चाहता हूँ

1948