nupur bandhe charan
गड़ेरिये के गीत
चली गयीं वे भेड़ें किस निर्जन में ?
संध्या-रंगभरी इस गिरि-घाटी से होती, ज्यों वक-पंक्ति गगन में
किसी दैत्य-माया में भटक पड़ीं वे
चलते-चलते पथ में कहीं अड़ीं वे
मुग्ध देखती नभ की फूलझड़ी वे
ज्यों सित सर्पावली पूँछ के बल हो सीधी खड़ी गरुड़-पूजन में
पागल परियों-सी प्रतिध्वनियाँ मेरी
देतीं उस अज्ञात कुंज की फेरी
जहाँ खड़ीं वे शाखा-तले अँधेरी
तन पर मँडराती आत्मा-सी, लौट, न जो पाती निज पूर्व सदन में
मंत्र निशाचर-वधुएँ पढ़ती होंगी
धीरे-धीरे आगे बढ़ती होंगी
एक-एककर बलि में चढ़ती होंगी
मेरी वे प्यारी भेड़ें, मुझको पुकारती, अपने अंतिम क्षण में
चली गयीं वे भेड़ें किस निर्जन में ?