nupur bandhe charan
जब तुम मुझे देख लेती हो मैं सुंदर हो जाता हूँ
आकांक्षा-बढ़ समरांगण में, विजय-मुकुट रख लूँ निज सिर पर
सत्य करूँ जीवन के सपने, यश-वैभव-मेघों से घिरकर
अप्रतिहत आदर्श-शिखर-हित, हारिल-सा बढ़ता ही जाऊँ
पर ढीला होता मन, ढीली चितवन जभी देखता फिरकर
जब तुम मुझे चूम लेती हो मैं कायर हो जाता हूँ
आकुलता, कटु जीवन-कारा तोड़ सुदूर उड़ूँ अंबर में
पल भर भी न सहूँ असफलता के वृश्चिक-दंशन भू पर, मैं
मृग-तृष्णा की भागदौड़ में प्राण विकल होते रुकने को
कर उठता विद्रोह हृदय, पर हँस आदेशभरे मृदु स्वर में
जब तुम मुझे बुला लेती हो, मैं पथ पर हो जाता हूँ
दुस्सहता, फिर भी न भाग्य की गति मुझको विस्मित कर पाती
सहते नित आघात नये, बन गयी कठोर वज्र-सी छाती
गोधूली-बेला में पर पूनोशशि-सी सिरहाने आकर,
देख उदास, अशक्त, उपेक्षित, दृग से करुणा-सरि ढुलकाती
जब तुम मुझे उठा लेती हो, मैं कातर हो जाता हूँ
जब तुम मुझे देख लेती हो मैं सुंदर हो जाता हूँ
1946