nupur bandhe charan

शोक-गीत

आज जर्जर तरु-शाखा टूटी

कई वसंत पूर्व ही अबसे
नाता तोड़ चुकी थी सबसे
नीरस, शुष्क खड़ी थी कबसे,

काल-चक्र से लूटी

देखा था इसने भी सावन
उर का नवोन्मेष मनभावन
इसके ही अंकुर से पावन

यह हरियाली फूटी

निज जीवन-रस देकर सारा
कलि-दल, फल-फूलों के द्वारा
यह जैसे गिरि से गिर धारा

भव-कारा से छूटी

आज जर्जर तरु-शाखा टूटी

१. अपनी दादी की मृत्यु पर सन्‌ 1941 में लिखित।