nupur bandhe charan
शोक-गीत
अभी बज रहे थे, अब नीरव हैं वीणा के तार
किस रहस्य से आयी थी वह, गयी कहाँ झंकार ?
किन काले मेघों के दल में
अप्सरियों की चहल-पहल में
रहती थी वह, और यहाँ आ
चली गयी किस शून्य महल में
कंपित तारों पर पग रखती, सातों सागर पार!
अभी जल रहा था दीपक, अब तम का पारावार
किस अतीत की ज्योति आ लगी थी तिरती इस पार?
किस प्रकाश के तरल सिंधु में
नक्षत्रों के बिंदु-बिंदु में
रहती थी वह, और यहाँ आ
लुप्त हुई किस दूर इंदु में?
कभी न फिरने को, सम्मुख पा नील गुफा का द्वार
अभी यहाँ संसार बसा था, अब सूने घरबार
आयी थी वह मूर्ति कहाँ से ? गयी कहाँ बन क्षार ?
किस निद्रा के नील नगर में
सपनों के सतरंगे घर में
रहती थी वह, और यहाँ आ
समा गयी किस भूमि-विवर में
जहाँ असूर्यम्पश्या छायाओं का है दरबार?
कभी यहाँ संसार बसा था, अब सूने घरबार
किस रहस्य से आयी थी वह, गयी कहाँ झंकार ?
1943
अपनी गोंद लेनेवाली माता श्रीमती मुहरी देवी की मृत्यु पर।