nupur bandhe charan
(6)
शकुन्तला चार दिनों की चाँदनी
तारक-ज्योतित कुसुम-जड़ित-सी
उतरी नभ की ज्योति तड़ित-सी
मुग्ध प्रकृति, ममता-विजड़ित-सी
शत-शत भुज-सरियों ने चाही स्वर्गों की निधि बाँधनी
वह मेरे उर तक आ ठहरी
सुनी देव-वंशी-स्वरलहरी
जब तक जगें दिशा के प्रहरी
तब तक रजत पंख फैला कर उड़ गयी दूर उन्मादिनी
मैंने जग देखी न छाँह भी
रही खुली की खुली बाँह भी
संग न दे सके चरण चाह भी
नहीं कन्व की, कालिदास की, मेरी वीणा-वादिनी
शकुन्तला चार दिनों की चाँदनी
(साढ़े तीन वर्षीया पुत्री के निधन पर)
अपनी 3.5 वर्षों की अल्पवयस पुत्री शकुंतला की मृत्यु पर सन् 1948 में
ये 6 गीत लिखे गये थे।
1948