nupur bandhe charan

नवोढ़ा-सी तुम कौन गगन में ?
उषे! तुम्हारा रूप देखकर कितना आज मगन, मैं!
तरल सीप में पानी-सा लावण्य प्रवाहित तन में
अरुण कपोल खिले पाटल दो मानो नभ-प्रांगण में
तारोंवाली रात गयी है रोती अभी विजन में
किसका आज प्रवेश हो रहा नीले मेघ-भवन में?
नवोढ़ा-सी तुम कौन गगन में ?