nupur bandhe charan
(विनोबा भावे तथा भूदान-आन्दोलन)
अम्बर तक जय-घोष छा रहा पावन पूजन-वेला है
आज धरा-माँ के मंदिर में भू-पुत्रों का मेला है
अँगड़ाई ले जाग रहे हैं युग-युग से सोनेवाले
मिले परस्पर बाँह बढ़ा, पानेवाले, खोनेवाले
देख रहे आँखें फैलाये सब जादू-टोनेवाले
प्रेम-पाश में बँध आये जो एक न थे होनेवाले
किस धुनवाले ने छेड़ा यह राग नया अलबेला है
कितने यहाँ जलन ले आये, विष की कर बौछार चले
कितने धन, दारा, परिजन में अपना तन-मन वार चले
आये कितन वीर, धरा का कर पल भर श्रृंगार चले
कितने ऐसे चले अमृतमय, औरों को भी तार चले
धन्य जिन्होंने भव-विमुक्ति-हित कष्ट मरण का झेला है
रवि न डूबते जहाँ कभी, उन साम्राज्यों की नाक कहाँ!
काल-पुरुष से लोहा ले जो, वे गांडीव, पिनाक कहाँ!
धन, धरती तो उसकी जिसने इनको हँस-हँस छोड़ दिया
पानी जो दोनों बाँहों में रक्खे बाँध, तिराक कहाँ!
त्याग-मंत्र सिखलाया जिसने, विश्व उसी का चेला है
गाँव-गाँव में गाता कोई गाँधी का संदेश चला
छयासठ कोटि पगों से उठकर, यह लो, सारा देश चला
कोटि-कोटि हलधर के जोड़े चले नील घन-माला संग
भूमि चली, नभ चला, चराचर चले, स्वयं सर्वेश चला
सत्य-अहिंसा-साधक जग में किसने कहा, ‘अकेला है!
मुंड-मालिनी का वह रुचता वेश न आज भवानी का
मातृ-रूप पालन करती जो, पूजन उस कल्याणी का
कनक-शस्य-कर-घृत, गैरिक-पट, घर-घर की पार्वती वही
जल में भी रह कोई प्यासा मरा करे क्यों पानी का!
अब न चलेगा, भूखों से जो खेल आज तक खेला है
अंबर तक जय-घोष छा रहा पावन पूजन-वेला है
आज धरा-माँ के मंदिर में भू-पुत्रों का मेला है
1957