nupur bandhe charan
गड़ेरिये के गीत
संध्या की पीली किरणों पर चढ़कर,
जब मैं घाटी पार चला जाऊँगा
सुन प्यारी भेड़ों का क्रंदन, मुड़कर
यहाँ कभी फिर लौट भला पाऊँगा।
खेत बाँध कच्ची मिट्टी की मेड़ों से
मिलता कृश बाँहें फैलाये पेड़ों से
लिपट सुकोमल ऊनभरी इन भेड़ों से
गिरि-निर्झर लाँघता, तीर-सा बढ़कर
छाया-सा तम में कुम्हला जाऊँगा
तब मैं हिममय चट्टानों में पड़ा हुआ
सड़े बीज-सा कहीं रहूँगा गड़ा हुआ
या तारे-सा मूक गगन में जड़ा हुआ
मँडराता रजनी के सूने गढ़ पर,
प्रस्तर-झंझा से कुचला जाऊँगा
वहाँ न यह भू, नभ, गिरि, वन प्यारा होगा
रात न दिवस न रवि, शशि या तारा होगा
दृश्य भिन्न ही उस जग का सारा होगा
एक बार इस मृण्मय घर से कढ़कर,
रूप कहाँ से फिर पहला पाऊँगा?
संध्या की पीली किरणों पर चढ़कर,
जब मैं घाटी पार चला जाऊँगा