nupur bandhe charan
कौन-सी थी दृष्टि वह, देखा मुझे जिससे
प्राण! तुमने फेर नीले नयन नर्गिस-से!
लाज की, संकोच की, भय की,
सरलता की, शुभ्र परिचय की,
कुतूहल की, चपल नव वय की,
रही मन की तुष्टि वह, किंवा भरी रिस से
अलसता की, रूप के बल की,
छिपी करुणा की, क्षणिक छल की,
छलकती मद की, हलाहल की,
विफल जल की वृष्टि वह लौटी चतुर्दिश-से
मान की, मनुहार की, मन की–
व्यथा गोपन की, विवशपन की,
स्नेह के अथवा मधुर क्षण की
हँस पड़ी जब सृष्टि यह परिहास के मिस से
कौन-सी थी दृष्टि वह, देखा मुझे जिससे!
प्राण! तुमने फेर नीले नयन नर्गिस-से!
1948