nupur bandhe charan
पढ़ मेरी कविता भर आये यदि उन श्याम दृगों में पानी
तो मैं समझूँगा कि लिखा जो मैंने अमर हो गया, रानी!
सोयी हो निष्कंप दीप की लौ-सी जब तुम मौन कक्ष में
जगा गयी हो मेरी स्मृति दुःस्वप्न अदृश आ रूद्ध वक्ष में
यदि ये मेरे स्वर दे पायें उस क्षण के स्पंदन को वाणी
तो मैं समझूँगा कि लिखा जो मैंने अमर हो गया रानी!
नहीं कल्पना भी परत्व की तुमसे मुझको सह्य अभी तक
बिछड़ दृगों से ज्यों अंतर में हँसती ही रहती हो अपलक
यदि मेरे इन गीतों में तुमने अभेदता यह पहचानी
तो मैं समझूँगा कि लिखा जो मैंने अमर हो गया, रानी !
प्रवहमान जीवन-सरिता में कहीं रिक्तता टिक न सकेगी
पर आत्मा अभाव को अपने सूने में पाकर बिलखेगी
कभी निठुरता पर अपनी यदि कसक उठे अंतर अभिमानी
तो मैं समझूँगा कि लिखा जो मैंने अमर हो गया, रानी
1947