nupur bandhe charan
गड़ेरिये के गीत
पर्वत घाटी पार वे गये
संध्या के धुँधले तम में ढूँढ़ने ज्योति का द्वार वे गये
चिंता मुझे, साथ वे अपने रथ-हय-गज न सवार ले गये
थे इस पार अपार बंधु, उस पार बिना आधार वे गये
स्वामी मुझे श्वेत भेड़ों का, इन पेड़ों का भार दे गये
“हम न फिरेंगे, हम न फिरेंगे’ कहते बारंबार वे गये
बालू में यह नौका वे तो बिना डाँड़-पतवार खे गये
कैसे पार लगेगी पर अब छोड़ जिसे मँझधार वे गये।
पर्वत-घाटी पार वे गये