nupur bandhe charan
लौट गये करुणामय आकर द्वार,
चूक-क्षमा माँगी नहीं
सारी रात गँवा दी, अरी गँवार!
पल भर को जागी नहीं
डँसे हुए थी तुझे नींद की नागिनी
जल-थल-नभ में बजी मिलन की रागिनी
कब आये प्रिय, जाना नहीं अभागिनी!
यह भी क्या सोना! कि गये वे हार,
नींद मरी त्यागी तहीं
प्रथम विजय-लालसा, कला अभिनय की
वय-अबोधता थी या पुतली भय की
गर्व अड़ा या उमड़ी लाज हृदय की
जग, प्रभात के मृदु पद-चिह्न निहार,
उठ, पीछे भागी नहीं
जाग बिता देती अब सारी रात
फिर जाता आ-आकर मलिन प्रभात
अब क्या हो वह बीत चुकी जो बात!
कभी प्यार करने फिर उसी प्रकार
लौटे अनुरागी नहीं
लौट गये करुणामय आकर द्वार,
चूक-क्षमा माँगी नहीं
सारी रात गँवा दी, अरी गँवार!
पल भर को जागी नहीं
1947