nupur bandhe charan

(2)

अब कैसा व्यवधान!
तुम हो जहाँ, वहाँ हूँ मैं भी, दोनों एक समान

तुम जड़ तो मैं भी जड़ता का हूँ विकार ही निष्फल
चेतन तुम तो मैं भी आत्मा की सत्ता ध्रुव, अविचल

तुम मुझमें, मैं तुममें, दोनों एक देह, मन, प्राण

श्वास-पथिक कर रहे पार यह जन्म-मरण की घाटी
थकित प्राण चल रहे तिमिर में लिये ज्ञान की लाठी

मैं हँस रहा देखकर अपना ज्ञान सदृश अज्ञान

कैसे नपे असीम गगन नन्हीं-नन्हीं पाँखों से!
देखूँ कैसे रूप तुम्हारा मिट्टी की आँखों से।

तुम अनंत की ज्योति और मैं उसका अटल प्रमाण

अब कैसा व्यवधान!
तुम हो जहाँ, वहाँ हूँ मैं भी, दोनों एक समान

1948

अपनी 3.5 वर्षों की अल्पवयस पुत्री शकुंतला की मृत्यु पर सन्‌ 1948 में
ये 6 गीत लिखे गये थे।