nupur bandhe charan

सत्य-अहिंसा शस्त्र न छूटे सत्याग्रह-संग्रामी से
आज गरीबी से लड़ना है जैसे लड़ें गुलामी से

मुक्त प्रकाश, पवन-सी धरती, सबकी भूख मिटाने को
माता को गोदी में बालक तरसे दाने-दाने को
मधु का पारावार, न मिलता कण भर प्यास बुझाने को
घेर दिया किसने जीवन के इस अनमोल खजाने को

चरण-चरण पर चाँप धरा को कौन खड़े ये स्वामी-से!

प्यास नहीं ओंठो पर, जल की भरी नदी भी दी उसने
जीवन का साधन दे पहले, कहा बाद में, ‘जी’ उसने
सबका सम अधिकार पवन पर, आतप पर, जलधारा पर
एक व्यक्ति के जीने को तो धरती नहीं रची उसने

लघु तृण भी न अछूता जिसकी करुणा कण-कण-गामी से

एक उदर-मुख एक सभी को जीवन-साधन एक रहे
दशमुख, बीस-भुजा क्‍यों कोई जग में बिना विवेक रहे !
पंडित, मूढ़, धनी या निर्धन, सुत समान सब माता के
सब के लिए खुले धरती के पावन मंगल-लेख रहे

आत्म-तत्व तो एक सभी में भिन्‍न देह गुण-ग्रामी से

आज नये बलिदान माँगता नव युग पाँखें खोल रहा
गांधी की वाणी में फिर से संत विनोबा बोल रहा
जन-जन के अंतर को छूता साम्य-समीरण डोल रहा
मनुज-हृदय के जुड़ जाते ही एक निखिल भूगोल रहा

बदल रही धारा जीवन की शांति क्रांति-परिणामी से

प्रेम-शांति की बीण बजाता, झोली ले सद्‌-भावों की
नयी सभ्यता रचने निकला जो निःशोषक गाँवों की
सत्य-अहिंसा पर आधारित न्यायपूर्ण श्रम का बल ले
स्वर्गों से भी बड़ी बना दी जिसने मिट्टी पाँवों की

जग प्रकाश की भीख माँगता ऐसे भिक्षु अकामी से
सत्य-अहिंसा शस्त्र न छूटे सत्याग्रह-संग्रामी से
आज गरीबी से लड़ना है जैसे लड़े गुलामी से

1955