bhakti ganga
भला इस जीवन का क्या अर्थ
यदि तेरा होकर मैं तेरा बनने में न समर्थ!
जो तेरा सेवक कहलाता
यदि अपने बल पर इतराता
जोड़ न पाये तुझसे नाता
तो जीना है व्यर्थ
तारों से स्वर्गिक स्वर फूटे
रज से निकले रूप अनूठे
यदि मुझसे रस-निर्झर छूटे
क्या हो बड़ा अनर्थ!
भला इस जीवन का क्या अर्थ
यदि तेरा होकर मैं तेरा बनने में न समर्थ!