bhakti ganga
भाग्य पर दोष व्यर्थ मढ़ता है
अपने ही कर्मों के फल से तू गिरता-चढ़ता है
थे बबूल के पेड़ लगाये
आम कहाँ से उनमें आये!
भर जो किये, दिये सो पाये
पत्री क्या पढ़ता है!
बस यह जान, न हों तेरे बस
सुख-दुख, लाभ-हानि, यश-अपयश
बदलें वे भी, यदि कर साहस
तू आगे बढ़ता है
स्रष्टा आप भले हो अविगत
पर उसका विधान है शाश्वत्
सफल वही, ले नव जीवन-व्रत
जो नव पथ गढ़ता है
भाग्य पर दोष व्यर्थ मढ़ता है
अपने ही कर्मों के फल से तू गिरता-चढ़ता है