bhakti ganga
क्षमा का ही तेरी संबल है
नाथ! न मेरे पास किसी साधन, पूजन का बल है
भक्ति भाव भी मुँह पर केवल
जिसमें त्याग, विराग न तपबल
बाहर से कितना भी उज्जवल
भीतर छल ही छल है
अर्थ-काम-यश-लिप्सा भारी
सोख चुकी संचित निधि सारी
‘क्या है आगे की तैयारी’
सोच ह्रदय विह्वल है
काल खड़ा सम्मुख पथ घेरे
तंत्र-मंत्र सब निष्फल मेरे
तू यदि करुणा-दृष्टि न फेरे
कर्म-विधान अटल है
क्षमा का ही तेरी संबल है
नाथ! न मेरे पास किसी साधन, पूजन का बल है