ghazal ganga aur uski lahren

130
इतना तो याद है कि मिले हम थे शाम को
कैसे कटी थी रात, मगर भूल रहे हैं
131
इतने चुभे हैं प्यार में काँटे गुलाब को
हूक उठती जब भी डाल झुकाते कहीं से हम
132
इतने लाल गुलाब कहाँ थे !
तुमने नयन मिलाये होंगे
133
इन आँसुओं से तुम अपना आँचल सजा रहे थे, पता नहीं था
मुझे मिटाकर भी मेरी क़िस्मत बना रहे थे, पता नहीं था
134
इन शोख़ अदाओं का सब खेल हमींसे है
होते न अगर हम, तो क्या इनका हुआ होता !
135
इलाज क्या हो तेरी दाद की हसरत का, ‘गुलाब’ !
तू तो बहरों में भी ले गीत की बीना आया
136
इस ज़िंदगी में एक यों बेबस तुम्हीं नहीं
पंछी बिना परों भी बवंडर में जी गये
137
इस तरफ़ एक किनारा है, मगर
उस तरफ़ कोई किनारा तो हो !
138
इस तरफ़ का किनारा तो है
उस तरफ़ का किनारा नहीं
139
इस तरह गोद में काँटों की सो रहे हैं गुलाब
जैसे आया हो तड़पने से घड़ी भर आराम
140
इस दिल में तड़पने के अरमान ही अच्छे हैं
रहने भी दें, अब घर ये वीरान ही अच्छे हैं
141
इस दौर का हर पीनेवाला फिरता है तलाश में प्याले की
एक हम हैं कि प्याला हाथ में ले, ख़ुद को ही पुकारा करते हैं
142
इस बयाबान के आगे भी शहर है, ऐ दोस्त !
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है
143
इस बेरुख़ी से प्यार कभी छिप नहीं सकता
तू भी है बेक़रार, कभी छिप नहीं सकता
144
इस सफर की कोई मंज़िल तो नहीं है, लेकिन
यह तो बतला कि कहाँ राह में सुस्तायें हम
145
इसके आगे भी कोई राह गयी होगी ज़रूर
हर मुसाफ़िर जहाँ अड़ता-सा नज़र आता है
146
इसपे मचले थे कि देखेंगे तड़पना दिल का
उनसे देखा न गया, हमसे दिखाया न गया
147
इसी राह से ज़िंदगी जा चुकी है
लकीरों पे दुनिया जो टूटे तो टूटे
148
इसे देखना भी नहीं था जो, तो जलायी थी ये शमा ही क्यों !
मेरे दिल को भा गयी इसकी लौ, तो बता, ये किसका क़सूर है
149
उठ न बैठें , अभी रोते हुए सोये हैं गुलाब
रात किस तरह गुज़ारी है, इसे कुछ न कहो
150
उठा फूल कैसा अभी बाग़ से यह
हरेक शाख़ जैसे झुकायी गयी है !
151
उड़ रही है तेरे जूड़े की जो ख़ुशबू हर ओर
एक सिवा दिल की तसल्ली के, हमारा क्या है !
152
उड़ रही हो तेरी आँखों की ही ख़ुशबू हर ओर
रंग कुछ और है नज़रों के ठहर जाने में
153
उड़कर कहीं से चैती ख़ुशबू-सी आ रही है
क्या आपकी नज़र में हैं फिर गुलाब फूले !
154
उड़के ख़ुशबू तेरे जूड़े की तो आयी हरदम
लाख हमसे तेरी सूरत थी छिपाई जाती
155
उड़के ख़ुशबू तो उन आँखों की मिली है हरदम
हमको नज़रों के इशारे न मिलें भी, तो क्या !
156
उड़ने लगा है क्यों भला चेहरे का उनके रंग !
दुहरा रहे थे हम तो कहानी किताब की
157
उड़ने लगा है गुलाब का रंग
एक निगाह तो कर लें, हुज़ूर !
158
उड़िए सुगंध बनके हवाओं में अब, गुलाब !
निकले हैं बाग़ से तो ग़ज़ल में समाइए
159
उतरती आ रही हैं प्राण में परछाइयाँ किसकी !
हवा में गूँजती हैं प्यार की शहनाइयाँ किसकी !
160
उतरती आ रहीं परछाइयाँ-सी
कोई ढूँढ़ो तो इनमें– ‘मैं कहीं हूँ’
161
उदास साँझ, हवा सर्द है, बादल हैं घिरे
और परदेश के डेरे में बंद हैं हम लोग
162
उधर राह भी देखता होगा कोई
क़दम जिस तरफ़ ये बढ़े जा रहे हैं
163
उन्हींकी राह में मरना कहीं होता तो क्या होता !
जहाँ पर ज़िंदगी है, मैं वहीं होता तो क्या होता !
164
उन्हींको उम्र की राहों में रख दिया हमने
दिये जो आपकी पलकों से झिलमिलाया किये
165
उन्हींको चाहते हैं अपने सीने से लगालें हम
कि जिनकी याद आते ही छुरी है दिल पे चल जाती
166
उन्हींको ढूँढ़ती फिरती थीं आँखें जानेवाले की
न करते इंतज़ार ऐसे, किसीकी रात ढल जाती !
167
उन्हींसे हो गयी रंगीन ज़िंदगी भी, मगर
कभी जो प्यार में खाया किये हैं धोखा हम
168
उन्हें कैसे बतायें क्या है इस आँसू बहाने में
जिन्हें हरदम हँसी के कहकहे ही छोड़ना ठहरा !
169
उन्हें बाँहों में बढ़कर थाम लेंगे
कभी दीवानेपन से काम लेंगे
170
उन्हें बेतकल्लुफ़ किया चाहता हूँ
ये क्या कर रहा हूँ ! ये क्या चाहता हूँ !
171
उन्हें भी आपकी ख़ुशबू ने छू लिया है, गुलाब !
जो कह रहे थे कि घेरे में बंद हैं हम लोग
172
उन्हें सवाल भी अपना सुनाके क्या होगा
जो हर सवाल पे बस मुस्कुराये जाते हैं !
173
उन्होंने आज हमें मुस्कुराके देख लिया
इस एक बात की चर्चा हज़ार हो, तो हो
174
उन्होंने दम में किया ख़त्म ज़िंदगी का सफ़र
जो कह रहे थे कि दो पग भी जा नहीं सकते
175
उनका बदला हुआ हर तौर नज़र आता है
अब न पहले का वही दौर नज़र आता है
176
उनका वादा सुबह-शाम टलता रहा
ख़त्म ऐसे ही कुल ज़िंदगी हो गयी
177
उनकी अलकें सँवारते हमने
काट दी ज़िंदगी अभाव के साथ
178
उनकी आँखों के रंग में है गुलाब
होके हर रंग से आज़ाद, आया
179
उनकी आँखों में खिल रहे थे गुलाब
हमने काग़ज़ पे उतारे, क्या ख़ूब !
180
उनकी आँखों में खिले हैं कुछ इधर ऐसे गुलाब
ख़ुद वही छेड़ते रहते हैं, हम तो चुप ही हैं
181
उनकी आँखों में प्यास देखेंगे
हम भी फूलों का हास देखेंगे
182
उनकी आवाज़ बुलाती है हर क़दम के साथ
ज़िंदगी दौड़ती जाती है हर क़दम के साथ
183
उनकी चुप्पी ने हमसे कुछ न कहा
पर कहीं पर तो गुल खिला ही गयी
184
उनकी नज़रों से छिपाकर उन्हींसे मिलना था
हम ग़ज़ल बनके न आते तो और क्या करते !
185
उनकी महफ़िल न फीकी पड़ी
लोग कितने ही आये, गये
186
उनकी महफ़िल है, शराब उनकी है, प्याला उनका
हम तो दो घूँट चले पीके, हमारा क्या है !
187
उनकी हर बात पे जाती है यहाँ जान अपनी,
लोग कहते हैं– ‘नज़ाकत के सिवा कुछ भी नहीं’
188
उनके अलबम में सूखे गुलाब
आज हम और कुछ भी नहीं
189
उनके आँचल की मिल रही है हवा
बेसुधी बेअसर नहीं मिलती
190
उनके आगे नहीं मुँह खोल भी पाते हों गुलाब
आँखों-आँखों में ही कुछ बात हुई जाती है
191
उनके आने से आ गयी है बहार
वर्ना हम तो गुलाब नाम के हैं
192
उनके गमले में तो हर रोज़ ही खिलता है गुलाब
न हुई तेरी अगर बाग़ में इज़्ज़त, न सही
193
उनके चरणों में पहुँचे गुलाब
लाख दुनिया बुलाती रही
194
उनके दिल में तो बसी तेरी ही रंगत है, गुलाब !
फूल लाखों जो बहारों में खिलें भी, तो क्या !
195
उनके नाख़ून कटाने की है चर्चा घर-घर
हमने सर भी जो कटाया है, कोई बात नहीं !
196
उनके रंगों में मिल गये हैं गुलाब
अब किसे क्या बतायें, हम क्या हैं !
197
उनके वादों पे जिये जाते हैं
ये भी एहसान उनके कम क्या हैं !
198
उनको फुरसत नहीं मेहँदी के लगाने से उधर
और इधर अपनी मुलाक़ात हुई जाती है
199
उनको हर बात में एक बात नयी आयी नज़र
नाम जब आपका यारों की नज़र तक पहुँचा
200
उनपे मरते हैं, हमारी मौत भी
ज़िंदगी बनकर रहेगी एक दिन
201
उनपे रोने का कुछ असर तो हुआ
हँस पड़े– ‘जलतरंग अच्छा है’
202
उनसे इस दिल की मुलाक़ात अभी आधी है
चाँद ढलता हो मगर रात अभी आधी है
203
उनसे उम्मीद क्या ! बाद मरने के वे, दो क़दम आके काँधा भी देंगे कभी
जो अभी डूबता देखकर भी हमें, एक तिनके का देते सहारा नहीं !
204
उनसे कहने की तो बातें थीं हज़ारों ही, मगर
मुँह भी हम खोल न पाये कि हुई उम्र तमाम
205
उनसे परदा है जिन्हें दिल की बात कहनी है
कुछ हो ऐसा कि ये परदा भी रहे, बात भी हो
206
उनसे मिलकर भी तड़पते हैं उनसे मिलने को
पास जितने भी ज़ियादा हैं उतने कम हैं आज

207
उफ़ रे ख़ामोशी ! नहीं आती कोई आवाज़ भी
हमने हर पत्थर से अपने सर को टकराने दिया
208
उभरती आयेंगी आँखों में सूरतें क्या-क्या !
हमारे साथ कोई दो क़दम चले तो सही
209
उमड़ आते हैं झट आँसू, कलेजा मुँह को आता है
उसे होंठों पे मत लाओ जो कोई नाम बाक़ी है
210
उमर सर झुकाये चली जा रही है
उमंगों की आवारगी छूटती है
211
उमीदें तो दिल की बुझीं इस तरह
दिये बुझते हैं जैसे रातों में आप
212
उम्र की राह जो तय कर आये, आओ उसीसे लौट चलें अब
देखो, यहीं तुम हमसे मिले थे, यह है जवानी, यह है लड़कपन
213
उम्र भर ख़ाक ही छाना किये वीराने की
ली नहीं उसने ख़बर भी कभी दीवाने की
214
उम्र भर हमको तड़पने की सज़ा दे डाली
प्यार का नाम लिया था कभी अनजाने में
215
उलझा था कभी इनमें आँचल तो, ‘गुलाब’ ! उनका
अब डाल का काँटा ही जीने का सहारा है
216
उस नज़र पे छाये हुए और सौ गुलाब
लीजिए, हैं आये हुए और सौ गुलाब
217
उसके वादों का एतवार किया
यह समझकर कि झूठ कहता है
218
उसको गुमनाम ही रहने दो, कोई नाम न दो
वह जो ख़ुशबू-सी निगाहों में इंतज़ार की थी
219
उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की–
‘कोई अब हमसे करे चर्चा न पिछली रात की’
220
उसने ठोकर से जो प्याले को भी तोड़ा होता
हमने आँखों से तो पीना नहीं छोड़ा होता
221
उसीको सजते रहे हैं हम अपनी ग़ज़लों में
था साथ जिसने बहाना बनाके छोड़ दिया
222
उसे अपने मन के ग़रूर से, न सुना किसीने तो क्या हुआ !
वो ग़ज़ल किसीसे भी कम न थी, जिसे हम सुनाके चले गये
223
उसे ‘हाँ’ कहूँ तो है सब कहीं, जो ‘नहीं’ कहूँ तो कहीं नहीं
वही मुझसे दूर ही दूर है, मेरे पास से भी जो पास है