ghazal ganga aur uski lahren
929
दम न आशा कहीं तोड़ दे
दम ही दम, और कुछ भी नहीं
930
दम न छूटे तो चारा नहीं
वर्ना जीना गवारा नहीं
931
दम भर कहीं नज़र जो उलझ ही गयी तो क्या !
दिल को ज़रा सँभाल, कोई देखता न हो
932
दम भर भी बाग़ में न रहे चैन से गुलाब
काँटे बिछे थे प्यार के आँचल की छाँह में
933
दम भर में बदल जायगी रंगत तेरी, गुलाब !
उनके ज़रा निगाह उठाने की देर है
934
दर्द अपना उन्हें ग़ज़लों में कह रहे हैं ‘गुलाब’
जिनसे यह भी न सहा जाय, और क्या कहिए !
935
दर्द कुछ और सही, दिल पे सितम और सही
आपको इसमें ख़ुशी है तो ये ग़म और सही
936
दर्द को हँसकर उड़ाना चाहिए
आँसुओं में मुस्कुराना चाहिए
937
दर्द दिल का तो नहीं बाँट सका कोई
आये जो दोस्त, गये आहें भर-भरके
938
दर्द दिल थामके सहते हैं, हम तो चुप ही हैं
लोग क्या-क्या नहीं कहते हैं, हम तो चुप ही हैं
939
दर्द पहले दर्द है फिर और चाहे कुछ भी हो
दर्द को ऐसे नहीं हँसकर उड़ाना चाहिए
940
दर्द वह दिल को मिला, उम्र की हद तक हमसे
चुप भी रहते न बना, कहके बताया न गया
941
दाना भी ‘गुलाब’ उनको अपना न बना पाते
इस प्यार की दुनिया में नादान ही अच्छे हैं
942
दिखा दे ज़ोर दिखाना हो जो तुझे, तूफ़ान !
उठेगा अब न कोई बुलबुला भी पानी में
943
दिन गुज़रते गये, रात होती रही
ज़िंदगी ख़ुद-ब-ख़ुद मात होती रही
944
दिन ज़िंदगी के यों भी गुज़र जायँ तो अच्छा
हम इस ख़ुशी के दौर में मर जायँ तो अच्छा
945
दिन-रात याद करने का एहसान तो गया
इल्ज़ाम भूलने का लगाते हो, ये क्या है !
946
दिया जो आपने दिल में कभी आकर जलाया था
दिया वह आँधियों से लड़ते-लड़ते बुझ गया, समझें
947
दिया भी याद का इसमें जलाके रक्खा है
दिल एक प्यार का मंदिर बनाके रक्खा है
948
दिया हर उम्मीद का बुझाकर, सुला लिया अपना दिल तो हमने
मगर उन आँखों में प्यार की लौ जगा रहे थे, पता नहीं था
949
दिये तो रूप की पलकों में सज रहे हैं, मगर
किसीके पाँव की आहट का इंतज़ार भी है
950
दिये तो हैं रोशनी नहीं है, खड़े है बुत ज़िंदगी नहीं है
ये कैसी मंज़िल पे आ गये हम, कि दोस्त हैं, दोस्ती नहीं है
951
दिल उनसे प्यार के नाते तो कोई दूर न था
अगर वे दिल से बुलाते तो कोई दूर न था
952
दिल कहाँ और कहाँ तेरी दुनिया !
शीशा पत्थर पे मार बैठे हैं
953
दिल का ऐसा है एक मुक़ाम जहाँ
काम आती न क़ामयाबी भी
954
दिल का कभी हमारे तड़पना तो देखिए
जिस वक़्त इसके पास कोई दूसरा न हो
955
दिल की तड़प नीलाम हुई है
अब ये कहानी आम हुई है
956
दिल की तड़पन देखिए, दुनिया की ठोकर देखिए
दो घड़ी तो रहके इन आँखों के अंदर देखिए
957
दिल की फिर कल यही आवारगी रहे न रहे
हसीन शाम की ऐसी घड़ी रहे न रहे
958
दिल के लुट जाने का ग़म कुछ भी नहीं !
आप ही सब कुछ हैं, हम कुछ भी नहीं !
959
दिल के शीशे में कोई चाँद चमकता ही रहा
रात भर सुर तेरी पायल का झमकता ही रहा
960
दिल को तुम्हारे वादे का एतबार तो रहे
यह ज़िंदगी रहे न रहे, प्यार तो रहे
961
दिल को देता कोई वह प्यार की धड़कन फिर से
जब हमें आपने आँखों में बिठाया होता
962
दिल को हमारे प्यार का धोखा तो नहीं है
यों आँख मिलाना, मगर अच्छा तो नहीं है
963
दिल जो टूटा तो हरेक शहर में ख़ुशबू फैली
फूल भी हम जो खिलाते तो और क्या करते !
964
दिल तो मिलता है, निगाहें न मिलें भी तो क्या !
कह दे आँखों से, न ये होंठ हिलें भी तो क्या !
965
दिल तो हमने ही लगाया है, आप चुप क्यों हैं !
दाँव यह हमने गँवाया है, आप चुप क्यों हैं !
966
दिल न काँटों से बिंधा हो तो ग़ज़ल ऐसी, ‘गुलाब’ !
लाख कहने का हो अंदाज़, नहीं होती है
967
दिल प्यार की आँच में तपता जब, मोती है चमकता आँखों में
इस बूँद को आँसू की भी कोई कहता है जो पानी, क्या कहिए !
968
दिल बहुत यों तो तेरी राह में घबरा ही गया
तूने मुड़कर कभी देखा तो क़रार आ ही गया
969
दिल में एक हूक-सी उठती है आईने को देख
क्या-से-क्या हो गये गर्दिश से हम ज़माने की
970
दिल में कुछ और भी यादों की कशिश बढ़ जाती
तुम जो मिलते भी तो आख़िर यही रोना होता
971
दिल में जो आपकी तस्वीर उतर आयी है
रंग तो प्यार का उसमें है, हक़ीक़त न सही
972
दिल में तो हमेशा तू रहता है, ‘गुलाब’ ! उनके
घर छोड़के आवारा हो भी अगर, तो क्या है !
973
दिल में भी है बसी हुई रंगत गुलाब की
मुँह फेरनेवाले ! न समझना है यहीं तक
974
दिल में ये प्यार के वहम क्या हैं !
तू ही बतला कि तेरे हम क्या है
975
दिल में रहके भी दूर-दूर रहे
और कुछ होके पास देखेंगे
976
दिल में रहते थे कभी आपके हम, भूल गये !
उम्र भर की थी निभाने की क़सम, भूल गये !
977
दिल में है वह, नज़र में है कि है नज़र के पार
रातें मिलन की हम इसी चक्कर में जी गये
978
दिल लौटता रहा है टकराके हर नज़र से
पत्थर बने शहर में, हैं फिर गुलाब फूले
979
दिल साथ-साथ धड़के, एहसास बहुत इतना
इस राह में हम दोनों अनजान ही अच्छे हैं
980
दिल से क्यों उनका एहसास मिट न पाता
खेल प्यार के ये अगर खेल थे नज़र के !
981
दिल हमें देखके कुछ देर को धड़का होता
तुम किसी और के होते भी अगर, क्या होता !
982
दिल हरेक चाँद-सी सूरत पे मचलता है, मगर
कोई इन चाँद-सितारों से अलग होता है
983
दिलों में प्यार की पीड़ा नयी जगाते चलो
कुछ और रूप की दुनिया को जगमगाते चलो
984
दिल्लगी और ही है, दिल की लगी और ही है
देखना और है, दर्शन की घड़ी और ही है
985
दी थी आवाज़ बहुत डूबनेवाले ने, मगर
बुलबुला सिर्फ किनारों की नज़र तक पहुँचा
986
दीप जलता ही रहेगा रात भर
प्यार छलता ही रहेगा रात भर
987
दुनिया की भीड़-भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं
गुम इसमें मेरे प्यार की मूरत भी हुई है
988
दुनिया के लिये प्यार को हमने मिटा दिया
दुनिया रहे उन्हींकी तरफ़दार, तो रहे
989
दुनिया को अपनी बात सुनाने चले हैं हम
पत्थर के दिल में प्यास जगाने चले हैं हम
990
दुनिया ने तो कहा जो, उन्हें याद है सभी
दिल ने कही जो बात, मगर भूल रहे हैं
991
दुनिया ने था किया कभी छोटा-सा एक सवाल
हमने तो ज़िंदगी ही लुटा दी जवाब में
992
दुबारा फिर कभी आँखों में रंग आता नहीं
नज़र का खेल है, बस एक बार हो, तो हो
993
दूर नज़रों से जा रहा है कोई
और दिल के क़रीब होता है
994
दूर मंज़िल , साथ छूटा, पाँव थककर चूर हैं
और झुकती आ रही है शाम सर पर, क्या करें !
995
दूरियाँ लाख हों, मिलते ही निगाहें उनसे
प्यार पहले का उमड़ता-सा नज़र आता है
996
दे गयी हर साँस कोई दुख नया
जन्म लेने की सज़ा पाया किये
997
देख लें प्यार से मुड़कर वे भी
हमने दिल से भी पुकारा तो हो !
998
देखकर तुझको झुका ली है नज़र उसने, ‘गुलाब’ !
हो चुका है ख़त्म पहला सिलसिला, समझे हैं हम
999
देखकर भी हमको होंठों पर हँसी आयी नहीं
आज कुछ बदली हुई है वह नज़र, समझे हैं हम
1000
देखकर हमको मुँह फिरा बैठे
प्यार करने का ढंग अच्छा है
1001
देखकर ही जिसे आ जाती बहारों की याद
आँधियो ! फूल तो एक बाग़ में छोड़ा होता !
1002
देखता हूँ जिधर, उधर मैं हूँ
अब कहाँ दूसरा रहा है कोई !
1003
देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार
याद भर रह गयी फूलों के मुस्कुराने की
1004
देखते-देखते कुछ यों हवा हुए हैं गुलाब
ज्यों गया हो कोई बीमार के सिरहाने से
1005
देखा करेंगे राह हम उनकी तमाम उम्र
झूठे हों ये वादे, कभी ऐसा नहीं होगा
1006
देखा किये हैं हमको सदा दूर ही से आप
अब आइए भी घर में, नज़र डूब रही है
1007
देखिए खोलके आँखें तो ज़रा
सामने मुस्कुरा रहा है कोई
1008
देखिए ग़ौर से जितना भी, हसीन है उतना
एक जादू का करिश्मा है नज़र के आगे
1009
देखिए, टूटी हैं कब ये तीलियाँ
जब नहीं उड़ने की ताक़त रह गयी !
1010
देखिए, हमको कहाँ राह लिये जाती है
अब तो मंज़िल भी यहाँ साथ ही चलती देखी
1011
देखे जो कोई रंग हैं सौ-सौ गुलाब में
मौसम के साथ-साथ बदलते रहे हैं हम
1012
देखें, ग़ज़ल में रंग जमाता है यहाँ कौन
कोई ज़रा गुलाब की ख़ुशबू उड़ाये तो
1013
देखेंगे सर को गोद में हम उनकी रात भर
बेहोश होके होश में आने की देर है
1014
देखेंगे हम भी अपने तड़पने का असर आज
पत्थर पिघल गये हैं, सुना, दिल की आह से
1015
देखो कहाँ पर आ गया है मोड़ अपनी बात का
आँखें झपकने लग गयीं, पिछला पहर है रात का
1016
देवता हम नहीं, न पत्थर हैं
माफ़ कुछ तो है आदमी के लिये
1017
दो घड़ी आपकी नज़रों पे चढ़ गये थे ‘गुलाब’
रात भर चाँद-सितारों से बात करते हैं
1018
दो घड़ी और भी ठहर न सके
जानेवाले ! ये क्या किया तुमने !
1019
दो घड़ी की हँसी-ख़ुशी के लिये
हम हुए क़ैद ज़िंदगी के लिये
1020
दो घड़ी चैन से बैठे नहीं हम यों तो कभी
देखिए, क्या भला इस दौड़ का हासिल बैठे !
1021
दो घड़ी भी न तेरा रंग ठहरता है, गुलाब !
और उस पर ये नशा– ‘कौन है हमारे सिवा !’
1022
दो घड़ी मुँह से लगाकर किसीने फेंक दिया
एक टूटे हुए प्याले की तरह हम हैं आज
1023
दो घड़ी रोना-कलपना, दो घड़ी मस्ती के रंग
आपकी आँखों का इनको खेल भर समझे हैं हम
1024
दो घड़ी हँस-बोल लेना भी ग़नीमत जानिए
ज़िंदगी देती है कब मिलने की मोहलत आपसे !
1025
दो दिलों बीच ज़रूरत ही किसीकी क्या है !
तुमसे कहनी है कोई बात, क़रीब आ जाओ
1026
दो न मंज़िल का पता हमको, मगर यह तो कहो
क्या न तुमको पास आकर मुस्कुराना चाहिए !
1027
दोष लहरों का नहीं था न किनारों का क़सूर
दिल की पतवार तो ख़ुद ही बिना पतवार की थी
1028
दोस्त कर लेंगे याद मरने पर
दिल की बदनामियों में नाम भी है
1029
दोस्ती में गले मिलते थे हम कभी, लेकिन
हो तेरी गोद में सर, हमने ये कब चाहा था !
1030
धड़का कभी दिल भी कोई, माना, हमारे वास्ते
होंठों पे जो आये नहीं, क्या मोल है उस बात का !
1031
धधकके बुझ भी गये हों, हम उनसे अच्छे हैं
जो अनबुझे ही सुलगते रहे हैं सारी रात
1032
धुन प्यार की जो समझें न उन्हें यह दिल की कहानी क्या कहिए !
कहना है जो कान में फूलों के, पत्तों की ज़बानी क्या कहिए !
1033
धूल से मुँह मोड़ना कैसा, गुलाब !
धूल ही बिस्तर बनेगी एक दिन
1034
धोखा कहें, फरेब कहें, हादसा कहें
इस ज़िंदगी को क्या न कहें और क्या कहें !
1035
धोखा ही हमने खाया हसीनों से है सदा
सावन समझ रहे थे फुहारों को देखकर