anbindhe moti
चंद्र-ग्रहण
सुमुखि ! चाँद को देख रही थी तुम खिड़की पर खड़ी-खड़ी
मैं चिल्लाया बाहर आओ, प्रिये, ग्रहण की हुई घड़ी
होंठों पर उँगली रख तुमने हलका-सा संकेत किया
हँसी रोकती बोली बरबस, कर के किंचित भौंह कड़ी
(फीका ज्योत्स्ना-मुख दमका
मानो चाँद नया चमका)
“चुप भी रहो, तुम्हींको सारी दुनिया भर की फिक्र पड़ी
कहीं न हो मालूम राहु को चंद्र-ग्रहण की भूल बड़ी’
1941