gandhi bharati
वह न रक्त-रेखा, मानवता के जिसने धो पाप अमाप
बचा लिया मोहांध विश्व को, वह जो बढ़ी वधिक की ओर
प्रशमित करने महापाप को उसके, जो धरती पर काँप
टूट गई दो पग चल कर ज्यों बापू के जीवन की डोर।
विजय असत् पर थी सत् की वह, तम पर चिर-प्रकाश-शर की,
मृण्मय पर चिन्मय की, जीवन की जाग्रत की जड़ता पर,
अमर प्रेम की क्षणिक रोष पर, नश्वर पर अविनश्वर की,
नर पर नारायण की, सत्य-अहिंसा की बर्बरता पर
वह थी परिणय-सूत्र, बँध गये जिसमें निखिल भुवन के प्राण
एक प्राण हो, वह थी जय का लेख प्रदीप्त तड़ित-द्युति-सा
मानवता की आशाओं का, वह थी रक्त-शिखा अम्लान
जिसमें लिखा गया था संसृति-ज्ञान, ऋचाओं में श्रुति-सा
वह जीवन की अमर-ज्योति थी जो बुझ सकती कभी नहीं।
धरती के कण-कण से नूतन जीवन बन जो फूट रही।