गाँधी भारती_Gandhi Bharati
- शत दशाब्दियों से
- महानाश के महाकाल में
- महाशून्य में कौन बढ़ा जा
- वह देखो उठती बापू के
- वह न रक्त-रेखा
- ना आलोक-स्रोत,
- गलने लगा हिमालय लज्जा से सागर चिंघाड़ रहा
- पूरब से पश्चिम तक गूँजा
- तुमने जीवन दिया हमें, हम तुम्हें मृत्यु दे बैठे आप
- बन आलोक प्राण में आओ
- जागो हे अपमानित-लांछित
- ठोकर खा गिर पड़ी, मनुजते! कौन अश्रुकण पोंछे
- एक दिव्य आलोक लोक में
- देखा मैंने स्वप्न
- एक मूक रेखा मनुजाकृतियों की
- अट्टहास कर उठा
- अंधकार-युग वह भारत का जब जातीय ज्योति
- भेद तिमिर-पथ गहन
- ‘भारत मेरे स्वप्नों का वह, जिसमें सब समान, सब एक,
- जैसे फूलों में मादकता
- जिस दिन प्रथम प्रभात हुआ था
- हवन-घूम उड़ रहा
- उस दिन बोधि-वृक्ष के नीचे एक अबोध-हृदय आया,
- मंडप बना प्रचंड
- एक तरी कुछ पीत पटों से
- सत्य-अहिंसा की वह
- बापू की पद-चिह्न-पंक्ति-सी मिट न सकेगी धरती पर
- हे अलोक ज्वार में बहते
- देख रहा मैं
- प्राणों के विश्वास बनो
- जन्म हुआ जिनका इस
- किधर जायगा, मानवता!
- बोल ‘महात्मा गाँधी की जय’ छोड़ दिये कितनों ने प्राण,
- घिरे तिमिर-धन
- एक ज्योति जो अनिर्वाप्य
- फिर-फिर नाश
- सेवा ही है मानवता
- लिखते लिखते शेष हो गयी
- आँसूभरी रात बीती
- धरती पर हँसती
- मर सकते वे
- सपने में जगकर
- राजा राम अयोध्या के थे! हुए विदा जो उसको छोड़
- देखा मैंने यंत्र-सज्ज
- अहे पतित-पावन!
- हे ममतामय पिता!