gandhi bharati
है आलोक-ज्वार में बहते मानवता के मृदु सुमनो!
खिलो आज पंचम स्वर में, कोकिल ने पढ़ा विजय-संदेश
नव वसंत का, लौट रहा है पतझड़ त्रस्त उन्हीं चरणों,
जिन चरणों से आया था वह निखिल सृष्टि का करने शेष।
गत-यामा, जागो हे वामा-सरित-रुद्ध-पथ विहग-कुमार !
प्रथम किरण का चुंबन कर लो जो फूटी उदयाचल के
रंक्तिम अंबर से, कोमल नव आशाओं के पंख पसार,
दूर उड़ चलो मुक्त वायु में, हे तृषार्त गंगा-जल के!
विहँस उठो वसुधा के दीपो! पाकर अरुण स्नेहमय ज्योति
आज किसीके नत नयनों की, मुक्ति-कामना से उद्दाम
लो आरती उतार स्वर्ग की; बन शत-शत तारक-खद्योत,
हे शीतल-आनंद-प्रभामय! मैं भी कर लूँ तुम्हें प्रणाम।
इस जय के पूजन-वंदन में मेरा भी स्वर साथ रहे।
मानवता के मस्तक पर जो, मुझ पर भी वह हाथ रहे।