gandhi bharati

सत्य-अहिंसा की वह पावन ज्योति विश्व में फैल गयी
जो नव पाटल की सुगंध-सी, भारत के उर से उद्भूत
विश्व-ज्ञान की नवल किरण जो, जीवन की अनुभूति नयी,
जिसने मानव को दीं त्याग, कष्ट, तप की सिद्धियाँ प्रभूत।

वह भारत की खोयी आत्मा जिसे दीप की लौ-सा आज
कोई कर के दीप्त धर गया, वह समस्त धर्मों की नींव,
सकल नीति सिद्धांतों की जड़, रस, जन-जन के मन का साज,
वह प्रबुद्ध आत्मा की कल्याणी कल्पना उदात्त अतीव।

वह जिसके पुण्य-स्पर्शों से प्राण-समर्पण-हेतु विकल,
कोटि-कोटि भारतवासी शलभों-से दीपक की लौ देख
लघु, आतुर-पद, मंत्र-खचित-से, आये गृह से मुग्ध निकल,
अपनी ही ज्वाला से लिखते अपनी बलि का स्वर्णिम लेख।

वह थी उसी विराट्‌ पुरुष की लीला बनकर जिसका क्षेत्र,
भारत फिर हो गया अंध मानवता का आध्यात्मिक नेत्र।