gandhi bharati
सपने में जग कर देखा मैंने जैसे सारा भू-लोक
एक नवल छवि से मंडित था, शत-शत-वर्ण-कुसुम-प्रच्छाय
पल्ली, ग्राम, नगर, जनपद, जन-जन-उर विगत-राग-भय शोक,
निज में हरित, भरित, धृत, पूर्ण, स्वशासित, प्रतिमानव-समुदाय
ऊसर उगल रहे थे कंचन-राशि हलों की नोकों से
महमह थे मरु, हरे बाजरे से लज्जित कर शस्यों की
देव-पूजिता-श्री, कोमल सुख के समीर के झोकों से
उघड़ रही थी ज्यों संमुख पट्टिका सुनहले दृश्यों की।
हिम पर थे नभ-चुंबी सौध-शिखर जिनकी प्रतिछवि नीचे
पारदर्शिनी नींवों-सी थी, पुरवधुओं के मीन-नयन
तिरते हिम में चंचल-उज्ज्वल, भौंहों के गुण से खींचे,
दुहरे-तिहरे बिंबित होते हाट, विपिन, वीथिका, अयन।
सारा विश्व परिष्कृत, सुंदर, मानव हिंसा का पथ छोड़
चिर-निर्माण-व्यस्त, वैभव से हरी-भरी पृथ्वी की क्रोड़।