gandhi bharati
किधर जायगी, मानवता! हैं तेरे सम्मुख पथ दो आज
एक अहिंसा और एक हिंसा का, जड़ में चेतन में,
आज एक चुनना ही होगा तुझे, शक्ति के बल का साज
या आत्मा का तेज, द्वेष या प्रेम परस्पर जीवन में।
अक्षौहिणी समक्ष लक्ष नृप चक्रवर्तियों की सुविशाल,
या भिक्षुक की क्षीण लँगोटी, युद्धिभूमि अथवा तप-कुंज,
महानाश का अट्टहास या प्रसूतिका माँ का स्मित भाल,
कौन तुझे रुचिकर, भीषण बमगोले या कमलों के पुंज?
गढ़-गढ़कर मृत्तिका-मूर्तियाँ दूर्वा-कुसुमों-सी सुकुमार
उन्हें झोंकना प्रिय तुझको आसुरी रोष की ज्वाला में,
या भाता है तुझे सदाशयतामय निखिल विश्व-परिवार
सदसत् में चुन ले, सुख-दुख में, तड़ित और घनमाला में,
तेरा पथ देवत्व, असुरता है अथवा, ओ मानवता!
करुणा या क्रूरत्व, त्याग या भोग, प्रेम या द्वेष, बता।