gandhi bharati
नव आलोक-स्रोत, जग ने देखी तम-तट पर ज्योति नवीन
संसृति के पहले प्रभात-सी, बंदी माँ की आँखों में
चमक उठा उल्लास, दलित मानवता काँप उठी गति-क्षीण,
सिहरन हो ज्यों उष:कमल में बंद मधुप की पाँखों में।
तड़-तड़ टूट गर्यी हथकड़ियाँ, उमड़ी दृग-यमुना की धार
चरण-स्पर्श करने को, सिंहासन हिंसक का डोल उठा
पीपल के पत्ते-सा, हारे एक-एक कर वधिक अपार
प्राण-हरण में सतत अहिंसक रज-कण बन भूडोल उठा।
हुआ पराजित कंस, भ्रातृ-संघर्ष छिड़ गया पर दुर्दात,
कितनी द्रौपदियाँ अपमानित, पिता-पितामह, सुत कितने
आपस में कट-मरे, हो गये भीष्म बाण-शय्या पर शांत,
दुख-कातर हो उठे विकल सब अर्जुन-भीम-सखा जितने।
बड़े प्रेम से विश्व सुन रहा था नवीन युग की गीता
हाय! हमारा रोष व्याध बन हमें बीच में ले बीता