gandhi bharati
अहे पतित-पावन! पावन कर दो इस पतित-अपावन को,
है विमुक्त! मुझको भी मुक्त करो लघुता की कारा से
दे सद्ज्ञान अहिंसा का, हे सत्! असत्य के रावण को
छिन्न-भिन्न कर, लो उबार आत्मा-प्रदीप तम-धारा से।
अहे अमर! इस मरण-चक्र में भ्रमित क्षुद्र जीवन को भी
कर दो अमर सुधा-स्पर्शों से, हरकर सब दुर्बलतायें
है निर्बल के राम हमारे! अविचलता दो मुझको भी
डिग न सके मन आघातों के कैसे भी झोके आयें।
मेरा क्षण-क्षण देव! तुम्हारी शुचिता से आलोकित हो,
कण-कण में देखूँ मैं निर्मल मूर्ति तुम्हारी करुणाधाम।
मेरी वाणी में, कर्मों, संकल्पों में प्रतिभासित हों
स्निग्ध तुम्हारा ही उज्ज्वल व्यक्तित्व, अनघ, अकलुष, अभिराम !
हे उदार! पापों से पीड़ित चिर-अभिशप्त, तप्त, भू पर
सिसक रहा मैं, मुझे उठा लो अपनी बाँहों में, ऊपर।