gandhi bharati

भेद तिमिर-पथ गहन, सिंधु, भूधर, शत तारा-विद्युत-लोक
सप्तावरण व्योम के, मेरा विहग कल्पना का उन्मुक्त
महासृष्टि के पार उड़ चला, चिर-अकल्पिता, अमिट, अशोक
जहाँ अमर आत्माएँ रहतीं यथा-योग्य निज स्थान-नियुक्त

देखा वहाँ बुद्ध, ईसा, सुकरात, शेखसादी, हाफिज
वाल्मीकि, शुक, व्यास, मुहम्मद, टाल्सटाय, लिंकन, होमर
पंक्ति-बद्ध बैठे थे ज्योतित करते पद्मासन निज-निज
तुलसी, सूर, कबीर, पतंजलि, नरसी, ज्ञानेश्वर, शंकर।

सहसा पड़ा दिखायी सब के बीच अरुण पाटल-स्थित एक
क्षीण अस्थियों की लघु आकृति में विराट्‌ उज्जवल आलोक,
ले प्रकाश-घट सभी लगे करने पय-धारा से अभिषेक
जिसकी शांत, मौन मुख-छवि का, ज्यों रवि का ग्रह-तारा-लोक,

सबकी छवि का मधुर प्रस्फुटन उसमें पड़ा दिखाई था,
सबके मन का मुकुर, सबोंकी वह एकत्र इकाई था,