gandhi bharati
प्राणों के विश्वास बनो तुम महानाश की वेला में,
हिंसा-रोषानल में शीतल क्षमा, दया की मृदु अनुभूति,
भीषण झंझा में भी अविचल बढ़ता रहूँ अकेला मैं,
पाकर हे विश्वेश तुम्हारी करुणा कंचन-सदृश विभूति,
मेरी आत्मा के प्रदीप में स्नेह-धार बनकर पावन
ज्योतिर्मम कर दो जीवन-नभ, सदा तुम्हारी ममता-मूर्ति
तिरे नयन-जल में, चिर-मंगलमय, चिर-विहसित, मनभावन;
कार्यों में दो प्रीति, सत्य वाणी में, चेतन में नव-स्फूर्ति।
मेरी हर साधना तुम्हारी श्रद्धा से सौरभमय हों,
निर्मल कर दो, उज्जवल कर दो, शीतल कर दो अंतरंतर
है अंतरवासी! जीवन में विचरूँ मैं भी निर्भय हो
तुम-सा हिंसा-रोष-घृणा से विकल चीखती पृथ्वी पर।
मुझ में भी साहस दो, स्वामी छाती खोल बढ़ूँ आगे,
अपने हाथों से उतार सिर दे दूँ, जब जननी माँगे।