gandhi bharati
जन्म हुआ जिनका इस पुण्यकाल में नारी-नर वे धन्य,
धन्य जिन्होंने देखा ईश्वर के प्रकाश को धरती पर
परिभ्रमण करते सदेह, पुर-ग्राम धन्य, वह भूमि अनन्य
जहाँ चरण रक्खे बापू ने जग-वंदित, शीतल, सुखकर।
देश धन्य वह जिसकी रक्षा के हित पूर्ण पुरुष को आप
लेना पड़ा पुनः कलि में अवतार, धन्य जनता वह दीन
चिर-दुख-दैन्य देख जिसका रह सके न दीनबंधु चुपचाप
ग्राह-गजेंद्र-मोक्ष से भी द्रुत दौड़ें पादत्राण-विहीन।
धन्य युवक वे बना गये जो पुत्रवती निज माता को
कर अनुसरण अनंत पथिक का, धन्य तरुणियाँ वे जिनसे
स्वामी बिछुड़ गये उस पथ पर; जो निज भगिनी-भ्राता को
लुटा चुके बापू पर वे ही उऋण हुए माँ के ऋण से!
नेता धन्य जिन्होंने अपना नेता बना लिया विभु को
सेवक वे भी धन्य सदा भजते थे जो ऐसे प्रभु को!