gandhi bharati
हे ममतामय पिता! चेतना दो इस जड़, जीवन्मृत को
लघुता बने महान् तुम्हारी अमर महत्ता से द्युतिमय;
हे आलोक-स्तंभ! संसृति का तम-पथ आलोकित कर दो;
हे करुणामय! कलुष हमारे कर लो निज शुचिता में लय।
देखें निज निजत्व से उठकर हम विशाल मानव-परिवार,
जग-जीवन का सत्य, स्नेह, सुख, प्रेम, भीति, दुख, द्वंद्व प्रचुर,
जन-जन की कामना, कुशलता, कला-कर्म के भेद अपार,
आशा, चिंता की लहरों से स्पंदित, आच्छादित उर-उर।
कितने नीलकंठ, हनुमान, भगीरथ जिसके आँगन में
भटक रहे प्रतिक्षण, देखें हम वह साधारण जन का गेह,
अणुओं में ब्रह्मांड-सदृश छोटे-से-छोटे भी मन में
स्वर्गों की कल्पना, अमरता जिससे तुच्छ लगे वह स्नेह।
लघु-महान् का भेद दूर हो, मानवता चिर-साध्य बने;
एक सत्य की अमर ज्योति ही जगती की आराध्य बने।