har subah ek taza gulab
ज़िंदगी मरने से घबराती भी है
चढ़के सूली पर कभी गाती भी है
बेसुधी रुकने नहीं देती हमें
जब कोई मंज़िल नज़र आती भी है
यों तो मरती ही रही है ज़िंदगी
यह कभी मरने से जी जाती भी है
कुछ तो कहती हैं तेरी ख़ामोशियाँ
जब नज़र मिलती है, शरमाती भी है
रोज़ खिलते हों उन आँखों में गुलाब
दिल में पर ख़ुशबू पहुँच पाती भी है !