हर सुबह एक ताज़ा गुलाब_Har Subah Ek Taza Gulab
- अब कहाँ मिलने की सूरत रह गयी !
- अब कोई प्यार की पहल तो करे
- अब उन हसीन अदाओं का रंग छूट गया
- आ, कि अब भोर की यह आख़िरी महफ़िल बैठे
- आप, और घर पे हमारे, क्या ख़ूब !
- आप क्यों दिल को बचाते हैं यों टकराने से !
- इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था
- उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की —
- कभी दो क़दम, कभी दस क़दम, कभी सौ क़दम भी निकल सके
- कभी होंठों पे दिल की बेबसी लायी नहीं जाती
- कहने को तो वे हमपे मिहरबान बहुत हैं
- कहाँ आ गये चलके हम धीरे-धीरे
- क्या छिपी है अब हमारे दिल की हालत आपसे !
- कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात
- कुछ और भी है उन आँखों की बेज़ुबानी में
- ख़त्म उनपर है सभी शोखियाँ ज़माने की
- ख़्वाब समझें कि वाक़या समझें
- चैन न आया दिल को घड़ी भर
- ज़माने भर की निगाहों से टालकर लाये
- ज़िंदगी मरने से घबराती भी है
- ज़िंदगी में यह सवाल उठता है अक्सर, क्या करें !
- जीने का कोई हासिल न मिला
- जो यहाँ पे आये थे सैर को, नहीं फिर वे लौटके घर गये
- जो सच कहें तो ये कुल सल्तनत हमारी है
- तुझसे लड़ जाय नज़र, हमने ये कब चाहा था !
- तेरी बेरुख़ी ने मुझको, ये हसीन ग़म दिया है
- दर्द को हँसकर उड़ाना चाहिए
- दिन गुज़रते गये, रात होती रही
- दिल को हमारे प्यार का धोखा तो नहीं है
- दिल हमें देखके कुछ देर को धड़का होता
- दिए तो हैं, रौशनी नहीं है
- न छोड़ यों मुझे, ऐ ज़िंदगी बेसाज़
- प्यार का रंग हज़ारों से अलग होता है
- प्यार किस तरह उनको जतलायें !
- प्यार की हम तो इशारों से बात करते हैं
- प्यार दिल में है अगर, प्यार से दो बात भी हो
- पाँव तो उस गली में धरते हैं
- फूल अब शाख से झड़ता-सा नज़र आता है
- बात ऐसे तो बहुत होके रही अपनी जगह
- बेझिझक, बेसाज़, बेमौसम के आ
- भेंट उसने गुलाब की ले ली
- मुझे देखते रहे जो बड़ी बेरुख़ी से पहले
- मेरी चाह उस नज़र में, कभी है, कभी नहीं है
- यह प्यार दगा दे, कभी ऐसा नहीं होगा
- यों ख़यालों में उभरता है एक हसीन-सा नाम
- यों तो निशान पाँव का मिलता है यहीं तक
- यों तो सभी से मेल-मुहब्बत है राह में
- राह हमको लिए जाती है कहाँ, कौन कहे !
- लगा न होंठों से प्याला तो एक बार कभी
- हम उनके प्यार में जगते रहे हैं सारी रात
- हमसे वो चुराता नज़र, ऐसा तो नहीं था
- हर क़दम यह राह मुश्किल और है
- हमारी ज़िंदगी ग़म के सिवा कुछ और नहीं
- हमारे वास्ते कहना है जो, खुशी से कहो
“मार्मिक संवेदना और सहज अभिव्यंजना के समाहार में इन ग़ज़लों की कला आप अपना आदर्श बन गयी हैं”
-आचार्य विश्वनाथ सिंह