har subah ek taza gulab
हमसे वो चुराता नज़र, ऐसा तो नहीं था
दुनिया की हवा का असर, ऐसा तो नहीं था
माना कि लोग पहले भी दुश्मन थे हमारे
दो-एक हों, सारा शहर ऐसा तो नहीं था
पहले भी कई बार निगाहें थीं मिल गयीं
हंगामा पर इस बात पर ऐसा तो नहीं था !
कंधों से हमारे तेरी बाँहों का लिपटना
मुश्किल भी हो, मुश्किल मगर ऐसा तो नहीं था !
वे कह गये गुलाब से आँचल छुड़ाके आज–
‘हम बँध गये हों उम्र भर, ऐसा तो नहीं था’