har subah ek taza gulab

जो यहाँ पे आये थे सैर को, नहीं फिर वे लौटके घर गये
जो कहीं न ठहरे थे उम्र भर, वे यहाँ पहुँचके ठहर गये

जो ये रट लगाते थे हर घड़ी, कि क़सम न टूटेगी प्यार की
वही सामने से अभी-अभी, बड़ी बेरुख़ी से गुज़र गये

न चमक है मुख पर, न कोई लय,नहीं अलविदा का भी होश है
ये सफ़र वे कैसे करेंगे तय, जो क़दम उठाते ही डर गये !

जो गये हैं आज यों छोड़कर, खड़े होंगे वे किसी मोड़ पर
कई बार पहले भी दौड़कर, थे ढलान पर से उतर गये

यहाँ हर तरफ़ है धुआँ-धुआँ, रहें हम तो कैसे रहें यहाँ !
थीं हसीन जिनसे ये बस्तियाँ, वे गुलाब आज किधर गये !