har subah ek taza gulab
जो सच कहें तो ये कुल सल्तनत हमारी है
पड़े हैं पाँवों में तेरे, ये ख़ाकसारी है
सुबह जो एक भी मिलती है ज़िंदगी की हमें
तमाम उम्र की इस बंदगी से भारी है
वो एक बात जो होंठों पे आके ठहरी है
वो एक बात तेरी हर अदा से प्यारी है
पता नहीं कि घड़ी प्यार की कब आयेगी !
अभी तो हमको रुलाने का खेल ज़ारी है
कभी तो सेज पे दुलहन के, कभी मरघट में
गुलाब ! तुमने भी क्या ज़िंदगी गुज़ारी है !