har subah ek taza gulab

फूल अब शाख़ से झड़ता-सा नज़र आता है
ठाठ पत्तों का उजड़ता-सा नज़र आता है

और ले चल कहीं, ऐ दोस्त ! हरेक घर से यहाँ
एक कंकाल उघड़ता-सा नज़र आता है

दूरियाँ लाख हों, मिलते ही निगाहें उनसे
प्यार पहले का उमड़ता-सा नज़र आता है

इसके आगे भी कोई राह गयी होगी ज़रूर
हर मुसाफिर जहाँ अड़ता-सा नज़र आता है

यों तो खिलते हैं उन्हें देखके आँखों में गुलाब
दिल में काँटा कहीं गड़ता-सा नज़र आता है