har subah ek taza gulab
पाँव तो उस गली में धरते हैं
दिल की आवारगी से डरते हैं
कुछ भी कहिये न आप फूलों को
ये घड़ी-दो-घड़ी ठहरते हैं
ये वो मौसम है जिसके आने पर
लोग क्या-क्या न कर गुज़रते हैं !
डूबने का मज़ा वे क्या जानें
जो किनारों की सैर करते हैं !
पूछा उसने कि यह गुलाब है कौन !
हम तो इस पूछने पे मरते हैं