har subah ek taza gulab

कहाँ आ गये चलके हम धीरे-धीरे
कि रुकने लगे हैं क़दम धीरे-धीरे

जो हल्की-सी दिल में कसक प्यार की थी
बनी ज़िंदगी भर का, ग़म धीरे-धीरे

कभी कोई मंज़िल भी मिलकर रहेगी
बढ़ाता चल, ऐ दिल ! क़दम धीरे-धीरे

थीं गुलज़ार ये बस्तियाँ जिनके दम से
गये वे कहाँ बेरहम धीरे-धीरे !

कहाँ एक दीवाना था जो शहर में !
हुई उसकी चर्चा भी कम धीरे-धीरे

गुलाब एक नाचीज़-सी चीज़ थे, पर
ग़ज़ब ढा रही है क़लम धीरे-धीरे