har subah ek taza gulab
कहने को तो वे हमपे मेहरबान बहुत हैं
फिर भी हमारे हाल से अनजान बहुत हैं
क्या किससे पूछिए कि जहाँ मुँह सिये हों लोग !
हैं नाम के ही शहर ये, वीरान बहुत हैं
ख़ामोश पड़े दिल को तड़पना सीखा दिया
हम पर किसीके प्यार के एहसान बहुत हैं
वे भाँप ही लेते हैं निगाहों का हर सवाल
वैसे तो और बातों में नादान बहुत हैं
काँटों का ताज कौन पहनता है यह, गुलाब !
माना कि खेल प्यार के आसान बहुत हैं