har subah ek taza gulab
क्या छिपी है अब हमारे दिल की हालत आपसे !
कुछ तो ऐसा हो कि हो मिलने की सूरत आपसे
ख़ाक के पुतलों में क्या है और इस दिल के सिवा !
दिल की रंगत ग़म से है, ग़म की रंगत आपसे
दो घड़ी हँस बोल लेना भी ग़नीमत जानिए
ज़िंदगी देती है कब मिलने की मुहलत आपसे !
वह ग़ज़ल के नुक़्ते-नुक़्ते से है दुनिया पर खुली
लाख हम इस दिल की बेताबी कहें मत आपसे
कब भला इस बाग़ की हद से निकल पाये गुलाब !
आप तक आये हैं चलकर, होके रुख़सत आपसे